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कविता

जल बिन मछली

ए. अरविंदाक्षन


जल बिन मछली जी सकती है
सपनों का अपार भंडार
उनके भीतर
जल उनका मार्ग
इधर-उधर
अन्दर-बाहर
सपने उनके भीतर
जल उनके बाहर।

 


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